
दुनिया के मशहूर विश्वविद्यालयों में से एक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने अपने एक अध्ययन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल ‘प्रगति’ की तारीफ की है। विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में भारत में 201 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत वाली 340 प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेजी लाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और उनके प्रगति मंच को दिया गया है। इनमें वे परियोजनाएं भी शामिल हैं जो तीन से 20 वर्षों में पूरी होनी थीं। अध्ययन में कहा गया है कि शासन में बदलाव के लिए दुनिया को ‘प्रगति’ से सीखना चाहिए।
डिजिटल इंडिया के तहत 2015 में शुरू हुआ था ‘प्रगति’ मंच
प्रगति यानी ‘प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन’ एक बहुउद्देश्यीय और बहु-मॉडल प्लेटफॉर्म है। प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के एक भाग के रूप में 25 मार्च 2015 को प्रगति का शुभारंभ किया था। सरकार के मुताबिक, यह प्रमुख हितधारकों के बीच वास्तविक समय की उपस्थिति और आदान-प्रदान के साथ ई-पारदर्शिता और ई-जवाबदेही लाने के लिए एक मजबूत प्रणाली भी है। यह कार्यक्रम अंतर-विभागीय संवाद अंतराल को कम करके मुद्दों को हल करने में प्रभावी साबित हुआ है, जिससे परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन में लगने वाला समय न्यूनतम हो गया है।
भारत का प्रगति मंच एक आकर्षक केस स्टडी
सरकार की इसी पहल पर इंग्लैंड के सबसे पुराने विश्वविद्यालय ‘ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी’ ने एक अध्ययन किया है। प्रगति पहल पर किए गए अध्ययन को ‘From Gridlock to Growth How Leadership Enables India’s PRAGATI Ecosystem to Power Progress’ शीर्षक दिया गया है। अध्ययन से पता चलता है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी की पहल ने सरकार की विभिन्न परियोजनाओं की समस्याओं, उनकी निगरानी और समाधान को बदल दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का प्रगति मंच इस बात की एक आकर्षक केस स्टडी है कि कैसे डिजिटल शासन विकास को गति दे सकता है।
विकास का लाभ देश के सबसे दूरदराज के कोनों तक पहुंचाने में मददगार
विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मंच नौकरशाही की निष्क्रयता को दूर करने और टीम इंडिया की मानसिकता और जवाबदेही और दक्षता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। प्रगति ने केंद्र और राज्य सरकारों के विविध हितधारकों को एक मंच पर लाया है और यह भूमि अधिग्रहण से लेकर अंतर-मंत्रालयी समन्वय तक बुनियादी ढांचे के विकास में कुछ सबसे जटिल चुनौतियों को हल करने में मददगार रहा है। इन पहलों ने न केवल परियोजना की समयसीमा में तेजी लाने के लिए वास्तविक समय के डेटा, ड्रोन फीड और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का लाभ उठाया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि विकास का लाभ देश के सबसे दूरदराज के कोनों तक भी पहुंचे। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि प्रगति का आर्थिक प्रभाव स्पष्ट है। भारतीय रिजर्व बैंक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के अध्ययनों के अनुसार, बुनियादी ढांचे पर खर्च किए गए प्रत्येक रुपये के लिए भारत को जीडीपी में 2.5 से 3.5 रुपये का फायदा होता है। यह प्रभाव आर्थिक विकास को गति देने में अच्छी तरह से कार्यान्वित की गई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की अहम भूमिका को दर्शाता है।
आर्थिक विकास से परे भी ‘प्रगति’ के प्रभाव
इसके अलावा, समय पर कार्यान्वयन पर ध्यान देने से आर्थिक लाभ हुआ है जिससे वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के दौरान भारत के लचीलेपन में योगदान मिला है। प्रगति के प्रभाव आर्थिक विकास से परे भी दिखते हैं। उन्होंने सामाजिक प्रगति और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद की है। सड़क, रेलवे, पानी और बिजली जैसी आवश्यक सेवाएं मुहैया करने वाली परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाकर, प्रगति ने लाखों भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है।
उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनुकरणीय
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रगति से मिली सीख विशेष रूप से प्रासंगिक हैं क्योंकि दुनिया भर के देश मध्य-आय के जाल से जूझ रहे हैं। यह प्लेटफॉर्म दर्शाता है कि शासन नवाचार, बुनियादी ढांचे में रणनीतिक निवेश के साथ मिलकर, निरंतर आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति के लिए आवश्यक परिस्थितियां बना सकता है। इसमें कहा गया है कि डिजिटल उपकरणों को अपनाने और सरकार के सभी स्तरों पर सहयोग को बढ़ावा देने के जरिए, भारत ने एक ऐसा रास्ता तैयार किया है जिसका अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएं अनुकरण कर सकती हैं।