
बेटियां अब बेटों से कम नहीं है। वक्त के साथ बेटियां भी हर वह काम कर रही हैं, जो सिर्फ बेटे ही करते थे। समाज की सोच भी बदल रही है। बेटियां पिता की अर्थी को कंधा देने के साथ मुखाग्नि दे रही हैं। ऐसा ही नजारा सोमवार को बालोद के बूढ़ा तालाब मार्ग में देखने को मिला।
बेटियों ने किया पिता का अंतिम संस्कार
परंपराओं से हटकर दो बेटियों ने अपने पिता को कंधा देकर मुक्तिधाम तक ले गईं और मुखाग्नि दी। मृतक का कोई बेटा नहीं था बल्कि दो बेटियां थीं। तांदुला मुक्तिधाम में उस समय लोगों के आंसू छलक पड़े, जब एक बेटी ने परंपराओं के बंधन को तोड़ते हुए अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। अंतिम संस्कार में वह रोती रही, पिता को याद करती रही, लेकिन बेटे की कमी को पूरा किया।
हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं लड़कियां
आज लड़कियों का जमाना हैं। वह हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। उसने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया है और वह सभी कार्य करेंगी, जो एक बेटे को करना चाहिए। इसके बाद सभी रिश्तेदारों ने एक राय होकर बेटी को ही अंतिम संस्कार के लिए आगे किया और उसे ढांढस बंधाया। बालोद बूढ़ा तालाब मार्ग निवासी 65 वर्षीय जय श्रीवास्तव का बीमारी के कारण रविवार को निधन हो गया।
समय के साथ सोच बदलने की जरूरत
बता दें कि उनकी सिर्फ दो बेटियां पूजा, अर्चना श्रीवास्तव हैं। एक बेटी की शादी हो गई है। जय श्रीवास्तव की मौत हो गई, लेकिन उसका कोई पुत्र नही होने से अंतिम संस्कार के लोग असमंजस थे। बेटियों ने अपने पिता को कंधा देकर तांदुला मुक्तिधाम तक ले गई और विधि विधान के अंतिम संस्कार किया। उन्होंने एक मिसाल कायम की। जिसे देखकर लोगों ने कहा कि समय के साथ सोच बदलने की जरूरत है।