Home Loan Charges: क्या आपने लिया है होम लोन, तो फटाफट जानिए इससे जुड़े कई चार्जेस
बिजनेस डेस्क, इंदौर। Home Loan Transfer Charges: अपने सपने का घर खरीदना हर किसी का सपना होता है। इस महंगाई में पैसों की बचत कर आशियाना खरीदना बेहद मुश्किल है। ऐसे में लोग होम लोन लेते है। इसमें किस्तों में पैसे देने पड़ते है और कुछ सालों के बाद घर आपका हो जाता है। इसमें ब्याज भी लगता है।
होम लोन में बैलेंस ट्रांसफर करने का विकल्प भी होता है। बैलेंस ट्रांसफर का ऑप्शन ग्राहक तब चुनता है जब दूसरे बैंक में कम ब्याज दर पर ऋण मिल रहा है। रीफाइनेंस करने से पहले आपको कुछ शुल्क के बारे में पता होना चाहिए, ताकि बैलेंस ट्रांसफर करवाने के बाद कोई परेशानी ना हो। आइए इन चार्जिस के बारे में जानते हैं।
प्रोसेसिंग चार्ज
अगर कोई होम लोन पर ट्रांसफर का विकल्प चुनता है, तो उसे प्रोसेसिंग फीस के रूप में कुछ रकम का 05. से 2 फीसदी चार्ज देना पड़ सकता है। मान लीजिए आपका बताया लोन 20 लाख रुपये है, तो प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में 10 हजार से 40 हजार रुपये तक देने होंगे।
रजिस्ट्रेशन चार्ज
अगर आप होम लोन में ट्रांसफर का विकल्प चुनते हैं, तो लोन एग्रीमेंट को फिर से पंजीकरण और स्टाम्प करना पड़ता है। स्टाम्प ड्यूटी संपत्ति की कीमत पर डिपेंड करती है। ये 3 से 7 फीसदी तक हो सकती है। मध्यप्रदेश में स्टाम्प ड्यूटी की दर 7.5 फीसदी और रजिस्ट्रेशन शुल्क 3 फीसदी है।
कानूनी और टेक्निकल फीस
यदि आप नए बैंक में बैलेंस ट्रांसफर करते हैं, तो बैंक प्रॉपर्टी की स्थिति और कानूनी दस्तावेज की जांच करता है। ऐसे में वकील या कानूनी टीम को पांच हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक कानूनी चार्ज दिया जाता है। वहीं, संपत्ति के मूल्यांकन के लिए तीन से पांच हजार रुपये तक टेक्निकल चार्ज देना पड़ता है।
आरबीआई ने रेपो रेट में नहीं किया बदलाव
रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में बदलाव नहीं किया। गर्वनर शक्तिदांस कांत ने मॉनेटरी पॉलिसी के नतीजे पेश किए। आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक 7 अक्टूबर को शुरू हुई थी। इस बैठक में रेपो रेट को 6.5% पर रखने का फैसला लिया गया है। यह 10वीं बार है जब केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में बदलाव नहीं किया है।
बेसिक होम के सीईओ अतुल मोंगा ने कहा कि आरबीआई द्वारा निष्पक्ष रूख अपनाने का फैसला भावी मौद्रिक नीति के प्रति संतुलित दृष्टिकोण की ओर इशारा करता है। हालांकि यह होम लोन की ब्याज दरों को कम करने की गारंटी नहीं देता, लेकिन सेंट्रल बैंक को मुद्रास्फीती के भावी रूझानों एवं आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर दरों को समायोजित करने की प्रत्यास्थता देता है।
रेपो रेट में कमी आ सकती है
उन्होंने कहा, ‘अगर मुद्रास्फीती कंट्रोल में रहती है और आर्थिक स्थिति स्थिर बनी रहती है, तो इस बात की पुरी संभावना है कि आरबीआई आगामी बैठकों में रेपो दरों में कमी ला सकता है। जैसा कि उद्योग जगत का अनुमान है, अगर ऐसा होता है, तो दिसम्बर या 2025 की शुरूआत तक ऋण लेने वालों की ईएमआई कम हो जाएगी, हालांकि यह बैंक पर भी निर्भर कर सकता है।’
अतुल मोंगा ने आगे कहा कि अगर आने वाले समय में आरबीआई द्वारा दरें की जाती हैं तो नए ऋण लेने वालों को अनुकूल माहौल का फायदा मिलेगा। क्रेडिट की मांग और व्यक्तिगत बैंक पॉलिसी जैसे पहलु भी इस बात को प्रभावित करें कि ईएमआई में कितनी जल्दी कमी आती है। ऋण लेने वालों को इस तरह के बदलावों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए ताकि वे अपने होम लोन पर संभावी बचत का लाभ उठा सकें।