आर्थिक आंकड़े बेहतर इकोनॉमी का दे रहे संकेत, लेकिन भू-राजनीतिक तनाव और रोजगार की चुनौतियां भी
भारत के ज्यादातर आर्थिक इंडिकेटर बेहतरी की ओर इशारा कर रहे हैं इसलिए लंबी अवधि में विकास की संभावनाएं मजबूत हैं। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग निवेश और खपत तीनों में जीडीपी की तुलना में अधिक वृद्धि हुई है। जीडीपी में निजी खपत का हिस्सा बढ़ा है। राजकोषीय स्थिति देखें तो ग्रॉस और नेट टैक्स कलेक्शन 20% से अधिक बढ़ा है।
भू-राजनीतिक तनाव, ट्रेड वार और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं। इन सबका असर भारत पर भी पड़ रहा है। इसके बावजूद इस साल भी भारत की आर्थिक विकास दर दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से काफी आगे रहेगी। दरअसल, भारत के ज्यादातर आर्थिक इंडिकेटर बेहतरी की ओर इशारा कर रहे हैं, इसलिए लंबी अवधि में विकास की संभावनाएं मजबूत हैं। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग, निवेश और खपत तीनों में जीडीपी की तुलना में अधिक वृद्धि हुई है। जीडीपी में निजी खपत का हिस्सा बढ़ा है। निजी क्षेत्र (कॉरपोरेट) के साथ आम लोगों ने भी खर्च बढ़ाया है। राजकोषीय स्थिति देखें तो ग्रॉस और नेट टैक्स कलेक्शन 20% से अधिक बढ़ा है। खुदरा महंगाई दो महीने से रिजर्व बैंक की 4% की सीमा के भीतर है। थोक महंगाई 2% के आसपास है जो कंपनियों के मुनाफे के लिए अच्छा है और उन्हें आगे निवेश का मौका देता है। मुद्रा विनिमय दर, ब्याज दर, विदेशी मुद्रा भंडार जैसे इंडिकेटर भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश के अनुकूल स्थिरता को दर्शाते हैं।
वैश्विक कंसल्टेंसी फर्म ईवाई ने सितंबर के लिए अपनी ‘इंडिया इकोनॉमिक पल्स’ रिपोर्ट में मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी ग्रोथ 7% से 7.2% रहने का अनुमान व्यक्त किया है। यह दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक होगा। पिछले गुरुवार को वित्त मंत्रालय ने अपनी समीक्षा में इस वर्ष 6.5% से 7% ग्रोथ का अनुमान जताया था। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक 6.8% आर्थिक विकास दर के आसार हैं। सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जून 2024 में भारत की विकास दर 6.7% रही, जो पिछले साल पहली तिमाही में 8.2% थी। एसएंडपी ग्लोबल का कहना है कि अगर भारत 6.7% या इससे अधिक की गति से बढ़ता रहा तो 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। ईवाई के अनुसार, इस वर्ष अमेरिका की विकास दर 2.6% और चीन की 5% रहेगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2024 में 3.2% और 2025 में 3.3% वैश्विक विकास दर का अनुमान जताया है।
लंबी अवधि में विकास की संभावनाएं
ईवाई के अनुसार, पहली तिमाही में सरकार का पूंजीगत खर्च 2.7 लाख करोड़ रुपये से 33% कम, सिर्फ 1.8 लाख करोड़ रुपये रहा है। इसका मुख्य कारण चुनाव कहा जा सकता है। इस साल के बजट में पूंजीगत खर्च में सरकार ने 17% वृद्धि का लक्ष्य रखा है। इसे पूरा करने के लिए आगे अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत पड़ेगी। पहली तिमाही में खर्च में कमी का असर जीडीपी ग्रोथ पर स्पष्ट है। इसके बावजूद लंबी अवधि में विकास की संभावनाएं मजबूत बनी हुई हैं। भारत की 6.7% विकास दर भी दूसरे बड़े देशों से काफी अधिक है। पहली तिमाही में कृषि के अलावा कुछ सर्विसेज की गति धीमी होने से यह गिरावट आई है। मौसम के प्रभाव के कारण पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र में सिर्फ 2% वृद्धि हो सकी।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग की तरफ से जारी समीक्षा में कहा गया है कि पहली तिमाही में कृषि को छोड़ बाकी सभी सेक्टर में 5% से अधिक वृद्धि हुई। इससे पता चलता है कि इकोनॉमी में ग्रोथ चौतरफा है। शहरों में बेरोजगारी दर में कमी और ग्रामीण क्षेत्र में आमदनी में वृद्धि के कारण खपत बढ़ी है। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन ने अगस्त में ग्रामीण क्षेत्र में वाहनों की बिक्री 4.8% बढ़ने की जानकारी दी है।
रिपोर्ट में ईवाई इंडिया के पार्टनर, टैक्स और इकोनॉमिक पॉलिसी ग्रुप, रजनीश गुप्ता ने कहा है, “इस साल के बजट में सरकार ने कई प्राथमिकताएं तय की हैं। इनमें रोजगार, स्किलिंग, एमएसएमई और मध्य वर्ग पर फोकस भी शामिल हैं। उत्पादन के कारकों पर ध्यान देकर देश में मैन्युफैक्चरिंग को प्रतिस्पर्धी बनाने, बिजनेस का माहौल बेहतर बनाने, ऊर्जा ट्रांसमिशन, शहरी विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर का रोड मैप तय करने जैसे कदमों से दीर्घकाल में भारत की विकास दर 6% से ऊपर रखने में मदद मिलेगी।”
जीडीपी में निजी खपत का हिस्सा बढ़ा
पहली तिमाही में निजी खपत (PFCE) 7.4% बढ़ी है। इस तिमाही जीडीपी (मौजूदा मूल्य पर) में निजी खपत ने 60.4% का योगदान किया। अच्छी बात यह है कि जीडीपी में इसका हिस्सा एक साल पहले (58.9%) की तुलना में बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों से भी मांग बढ़ रही है। मनरेगा के तहत काम की मांग में लगातार 10 महीने से कमी आ रही है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती को दर्शाता है। दोपहिया वाहन बिक्री को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक इंडिकेटर माना जाता है और अप्रैल-अगस्त 2024 में इसमें 12% वृद्धि हुई है। जुलाई तक उर्वरकों की बिक्री भी 12.1% बढ़ी है। हालांकि अप्रैल-अगस्त के दौरान ट्रैक्टर बिक्री 11.8% कम हुई है। अच्छे मानसून के बाद ग्रामीण क्षेत्र से मांग और बढ़ने की उम्मीद है।
निवेश और मैन्युफैक्चरिंग में वृद्धि
पहली तिमाही में पूंजी निवेश 7.5% बढ़ा है और यह 6.7% के जीडीपी ग्रोथ से ज्यादा है। खास बात यह है कि केंद्र सरकार की तरफ से पूंजीगत खर्च में कमी के बावजूद इसमें जीडीपी की तुलना में अधिक वृद्धि हुई है। यानी निजी क्षेत्र के साथ आम लोगों ने खर्च बढ़ाया है। यह बात कंस्ट्रक्शन के आंकड़ों से भी साबित होती है जिसमें 10.5% वृद्धि हुई। जुलाई में सीमेंट उत्पादन में 5.5% और क्रूड स्टील उत्पादन में 7.2% से कंस्ट्रक्शन में वृद्धि का पता चलता है। बिजली में 10.4% वृद्धि इसकी बढ़ती मांग को दर्शाता है।
निवेश की तरह मैन्युफैक्चरिंग में भी पहली तिमाही में इकोनॉमी की तुलना में अधिक, 7% ग्रोथ हुई है। पिछले साल पहली तिमाही इसमें 5% और उससे पिछले साल 1.4% की वृद्धि हुई थी। हालांकि जनवरी-मार्च 2024 के 8.9% की तुलना में मैन्युफैक्चरिंग की गति धीमी है। विकास की गति तेज करने और नौकरियां सृजित करने के लिए सरकार ने जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा बढ़ाकर 25% करने का लक्ष्य रखा है। कस्टम ड्यूटी ढांचे में सुधार, भविष्य के सेक्टर पर फोकस और एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पॉलिसी लागू करके मैन्युफैक्चरिंग में दीर्घकालिक ग्रोथ हासिल की जा सकती है।
दूसरे देशों के साथ भारत में भी महंगाई में कमी
ईवाई के अनुसार, केंद्रीय बैंकों की तरफ से लंबे समय तक ब्याज दरें ऊंची रखने का असर दिखने लगा है और विश्व स्तर पर महंगाई में गिरावट आ रही है। लगातार पांच महीने तक महंगाई दर घटने के बाद अमेरिका ने इसी महीने ब्याज दर में 0.5% की बड़ी कटौती की। अमेरिका में इस साल सिर्फ 2% महंगाई का अनुमान है। यूरोपियन यूनियन और इंग्लैंड ने भी ब्याज दरें घटाई हैं। भारत में खाद्य महंगाई कम होने के कारण खुदरा महंगाई दर घट कर 3.65% पर आ गई है, हालांकि इसमें आगे का रुख भी देखना होगा।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी का कहना है, “महंगाई दो महीने से रिजर्व बैंक की 4% की सीमा के भीतर है। खाद्य महंगाई अगस्त में 5.7% रही, लेकिन अनाज की महंगाई दर दो साल के निचले स्तर, 8.6% पर आ गई है। सब्जियों की महंगाई दर में भी कमी आई है।” जोशी के अनुसार, सितंबर के बाद महंगाई पर बेस इफेक्ट का फायदा कम होने लगेगा। तब महंगाई दर कीमतों पर निर्भर करेगी। फिर भी अच्छे मानसून और खरीफ की बुवाई अधिक होने के कारण खाद्य महंगाई नीची रहने की उम्मीद है। वे कहते हैं, “भू-राजनीतिक परिस्थितियां नहीं बिगड़ीं तो आरबीआई इस साल दो बार ब्याज दर घटा सकता है।”
विदेशी निवेश और शेयर बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर
भारतीय शेयर बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई के आसपास चल रहे हैं। पहली तिमाही में कंपनियों ने आईपीओ से 44,000 करोड़ रुपये जुटाए जो एक साल पहले की तुलना में लगभग तीन गुना है। इक्विटी में विदेशी निवेश में उतार-चढ़ाव के बावजूद म्यूचुअल फंडों में एसआईपी निवेश लगातार बढ़ रहा है। जून 2024 में एसआईपी में 23,300 करोड़ रुपये आए जो एक साल पहले के 11,800 करोड़ का लगभग दोगुना है। इक्विटी के विपरीत कंपनियों के कर्ज (डेट) में विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है। यह जेपी मॉर्गन के इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में भारत को शामिल किए जाने का असर हो सकता है। ग्रॉस एफडीआई पहली तिमाही में 26.4% बढ़ा है। लगभग 80% एफडीआई मैन्युफैक्चरिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर सर्विसेज, बिजली और अन्य ऊर्जा क्षेत्रों में आया है।
राजकोषीय स्थिति मजबूत, कर्ज में भी वृद्धि
मौजूदा वित्त वर्ष में राजकोषीय स्थिति अभी तक अच्छी है। वित्त वर्ष के पहले चार महीने (अप्रैल से जुलाई) में कुल कर संग्रह 21.3% बढ़ा है और प्रत्यक्ष करों में 33.6% की वृद्धि हुई है। अप्रैल-जुलाई के दौरान व्यक्तिगत आय कर संग्रह 53.4% बढ़ा जबकि कॉरपोरेट कर में सिर्फ 4.8% की वृद्धि हुई। कस्टम ड्यूटी में भी सिर्फ 3.8% और एक्साइज ड्यूटी में 0.8% की वृद्धि हुई है। रिफंड के बाद नेट जीएसटी संग्रह में 6.5% इजाफा हुआ है।
वित्त वर्ष 2021-22 में व्यक्तिगत आय कर संग्रह, कॉरपोरेट कर से कम था। लेकिन 2023-24 में व्यक्तिगत आय कर 11% अधिक हो गया। अप्रैल से जुलाई तक 2024 के दौरान व्यक्तिगत आय कर संग्रह, कॉरपोरेट कर के दोगुना से भी ज्यादा था। ईवाई के अनुसार, हालांकि यह देखना है कि यह ट्रेंड आगे भी बना रहता है या नहीं।
कर संग्रह में वृद्धि, रिजर्व बैंक की तरफ से सरकार को रिकॉर्ड 2.11 लाख करोड़ रुपये डिविडेंड का भुगतान और सरकार के कम पूंजीगत खर्च के कारण राजकोषीय घाटा भी कम हुआ है। अप्रैल-जुलाई में घाटा पिछले साल के 6.1 लाख करोड़ के मुकाबले यह 2.8 लाख करोड़ रुपये रहा।
बैंक कर्ज की ग्रोथ अच्छी बनी हुई है। जुलाई 2024 में यह 15.1% बढ़ा है। इसमें इंडस्ट्री को कर्ज में 10.2% की वृद्धि हुई जो जुलाई 2023 में सिर्फ 4.6% बढ़ी थी। दूसरी तरफ होम लोन, ऑटो लोन जैसे व्यक्तिगत कर्ज की वृद्धि दर जुलाई में 17.8% रही जो एक साल पहले 18.4% थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि होम लोन अप्रैल से जुलाई के दौरान 83% बढ़ा है। दो महीने तक गिरने के बाद बैंक डिपॉजिट भी जुलाई में बढ़ा है।
वैश्विक परिस्थितियों का असर निर्यात पर
वित्त मंत्रालय के अनुसार, पहले पांच महीने में भारत से वस्तुओं का निर्यात बहुत मामूली बढ़ा है। इससे वैश्विक डिमांड में कमजोरी, उत्पादन और प्रतिस्पर्धा में भारत की चुनौतियों का पता चलता है। ईवाई का कहना है कि हाल के वर्षों में तेल को छोड़ बाकी मर्चेंडाइज वस्तुओं का निर्यात सर्विसेज की तुलना में अधिक रहा है। उदाहरण के लिए 2021-22 में नॉन-ऑयल मर्चेंडाइज निर्यात 354 अरब डॉलर था जबकि सर्विसेज का निर्यात 255 अरब डॉलर का हुआ। लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष के पहले चार महीने में सर्विसेज का निर्यात थोड़ा ज्यादा है। इसमें 11.7% की वृद्धि हुई जबकि नॉन-ऑयल मर्चेंडाइज निर्यात में सिर्फ 4.8% की वृद्धि हुई है। अप्रैल-जुलाई तक 118 अरब डॉलर के नॉन-ऑयल मर्केंडाइज निर्यात की तुलना में 119 अरब डॉलर की सेवाओं का निर्यात हुआ।
सर्विसेज का नेट निर्यात बढ़ने और रेमिटेंस में वृद्धि होने से बाहरी झटकों से भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने में मदद मिलेगी। भारत के ऊर्जा उत्पादन में रिन्यूएबल एनर्जी का अनुपात लगातार बढ़ रहा है, इसलिए ऊर्जा आयात पर निर्भरता भी आगे कम होगी। आयात बढ़ने से यह संकेत मिलता है कि घरेलू मांग बढ़ रही है, लेकिन शहरों में मांग घटने के संकेत भी हैं। ऑटोमोबाइल बिक्री में सुस्ती से इसे समझा जा सकता है। अप्रैल से अगस्त तक यात्री वाहनों की बिक्री 5.5% और कॉमर्शियल वाहनों की 3.9% बढ़ी है। इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के रजिस्ट्रेशन 14.2% और यात्री वाहनों के 13.5% कम हुए हैं।
जोशी के अनुसार आईआईपी उत्पादन के आंकड़े देखें तो पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में तेज वृद्धि हुई है। हालांकि औद्योगिक उत्पादन इंडेक्स (आईआईपी) 4.7% से सुधर कर जुलाई में 4.8% हुआ है। इसके बावजूद जीडीपी आंकड़ों में निजी खपत में काफी वृद्धि दिखाई गई है, तो हो सकता है कि वस्तुओं की तुलना में सेवाओं की मांग ज्यादा रही हो। या फिर मांग को आयातित वस्तुओं से पूरा किया गया हो।
अप्रैल-जुलाई के दौरान रेलवे से माल ढुलाई 4.9% और विमान से 13.7% बढ़ी। यह ई-कॉमर्स और अंतरराष्ट्री कार्गो ऑपरेशन में वृद्धि के कारण है। इन चार महीने में पेट्रोलियम पदार्थों की खपत भी 4.8% बढ़ी। दैनिक ऊर्जा खपत में 12.5% इजाफा हुआ है। अप्रैल-जुलाई में रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन 7.1% बढ़ा। कुल बिजली उत्पादन में रिन्यूएबल का हिस्सा 12% से 15% के बीच है।
भू-राजनीति से कमोडिटी भी प्रभावित
वित्त मंत्रालय का कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार में विवाद, जलवायु परिवर्तन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में तरक्की से विश्व व्यापार बदल रहा है। विभिन्न देश संरक्षणवादी नीतियां अपना रहे हैं और ग्लोबल सप्लाई चेन में बदलाव आ रहा है। ऐसे में डब्लूटीओ ने 2024 और 2025 में विश्व व्यापार में धीमी वृद्धि का अनुमान जताया है।
अक्टूबर 2023 से अब तक कच्चा तेल 70 से 90 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहा है। लेकिन ओपेक देशों की तरफ से उत्पादन में कटौती करने और भू-राजनीतिक तनाव के कारण आगे इसके दाम बढ़ने का खतरा है। हालांकि रिन्यूएबल का इस्तेमाल बढ़ने से कोयला के दाम विश्व बाजार में ज्यादा नहीं बढ़े हैं। केंद्रीय बैंकों की खरीद और निवेश मांग के कारण सोना महंगा हो रहा है। भू-राजनीतिक तनाव की वजह से उद्योगों में प्रयोग होने वाले मेटल महंगे हो सकते हैं। अप्रैल से अगस्त के दौरान पांच महीने में कॉपर 12.7% महंगा हो चुका है। एल्युमिनियम के दाम भी बढ़े हैं। लेकिन चीन में कंस्ट्रक्शन सेक्टर से मांग कम होने के कारण स्टील की कीमतें अप्रैल-अगस्त के दौरान 24% कम हुई हैं।
भारत के लिए कुछ और चुनौतियां भी हैं। जैसे महंगाई दर को 4% से नीचे बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण होगा। हाल में सब्जियां महंगी हुई हैं जिससे सितंबर में खाद्य महंगाई बढ़ने की आशंका है। खाद्य पदार्थों और ईंधन को छोड़कर बाकी चीजों की कोर महंगाई मई 2023 से लगभग हर महीने कम हो रही थी, लेकिन जुलाई में इसमें वृद्धि हुई है। लगातार बिगड़ती भू-राजनीतिक परिस्थितियों से निर्यात प्रभावित हो सकता है। हाल में जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि रोजगार में कृषि का हिस्सा बढ़ा है। यानी दूसरे क्षेत्रों में लोगों को काम कम मिल रहा है और वे कृषि में मजदूरी की ओर लौट रहे हैं।
एसएंडपी के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में पीएमआई लगातार अच्छा बना हुआ है। हालांकि खर्च बढ़ाने के कारण सरकार का कर्ज भी जीडीपी के 86% तक पहुंच गया है। इस मामले में यह जापान, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड और अमेरिका के बाद दुनिया में छठे स्थान पर है। आगे ग्रोथ निजी क्षेत्र के निवेश पर निर्भर करेगी और मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाना जरूरी है। क्रिसिल का कहना है कि अगले पांच वर्षों में 18 से 20 प्रतिशत औद्योगिक निवेश सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स और फोटोवोल्टेक मॉड्यूल मैन्युफैक्चरिंग जैसे नए सेक्टर में होंगे। ईवाई के अनुसार कस्टम ड्यूटी ढांचे में सुधार, भविष्य के सेक्टर पर फोकस और एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पॉलिसी लागू करके मैन्युफैक्चरिंग में दीर्घकालिक ग्रोथ हासिल की जा सकती है।