
छत्तीसगढ़ के धमतरी का श्रवण बाधित बालिका विद्यालय सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहा है. 2005 में शुरू हुआ ये स्कूल पहले दिन से ही शिक्षक की किल्लत झेल रहा है. लगातार शासन से मदद भी मांगी जारी है. 10 क्लास, 97 बच्चे और 1 शिक्षक. ऐसे में क्या ये पढ़ेंगे और क्या ये बनेंगे. श्रवण बाधित लोगों के कल्याण विकास और उन्हें समान अवसर देने के लिए कई तरह के दावे किए जाते रहे हैं, कई तरह की योजनाएं भी है. लेकिन उन सभी दावों की जमीनी सच्चाई क्या है? उन योजनाओं का कितना लाभ दिव्यांगजनों को मिल पा रहा है, जमीनी हकीकत क्या है? ये देखना जरूरी है.
धमतरी में 2005 में विशेष बेटियों के लिए एक स्कूल खोला गया. ऐसी बच्चियां जो सुन या बोल नहीं सकती, उनको भी दूसरो के जैसे शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर अवसर देने का लक्ष्य रखा गया. बेशक ये महत्वपूर्ण शुरुआत की गई. धमतरी का ये स्कूल पहले किराए के भवन में चला. बाद में एक बड़ा स्कूल भवन और एक छात्रावास बनवाया गया. अब इस स्कूल में 10वीं तक कक्षा लगती है. कुल 97 छात्राएं पढ़ रही हैं, लेकिन शिक्षक सिर्फ एक ही है.
शासन से मांगी जा रही मदद
2005 में जब ये शुरू हुआ तो 5वीं तक के सेटअप की मंजूरी थी. इसमें 5 शिक्षक के पद स्वीकृत थे, लेकिन मिले सिर्फ 2 ही शिक्षक. अब यहां कक्षा 8वीं तक के सेटअप की मंजूरी है, जिसमें 8 शिक्षक का पद है, लेकिन मौजूद है सिर्फ एक रेगुलर शिक्षक. कार्यालय के पदों को मिला दें तो कुल 19 पद स्वीकृत हैं, लेकिन मौजूद सिर्फ 5 है. इनमें से एक अधीक्षक है और एक शिक्षक है, बाकी रसोइया और चौकीदार, माली जैसे पद है, जो पढ़ाने का काम नहीं कर सकते. ऑफिस में बाबू के काम के लिए भी डेलीवेजेस पर कर्मचारी रखना पड़ा है. साफ है कि ये 20 साल पुराना स्कूल पहले दिन से ही शिक्षक संकट झेल रहा है.